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वै॒श्वा॒न॒रः प्र॒त्नथा॒ नाक॒मारु॑हद्दि॒वस्पृ॒ष्ठं भन्द॑मानः सु॒मन्म॑भिः। स पू॑र्व॒वज्ज॒नय॑ञ्ज॒न्तवे॒ धनं॑ समा॒नमज्मं॒ पर्ये॑ति॒ जागृ॑विः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vaiśvānaraḥ pratnathā nākam āruhad divas pṛṣṭham bhandamānaḥ sumanmabhiḥ | sa pūrvavaj janayañ jantave dhanaṁ samānam ajmam pary eti jāgṛviḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वै॒श्वा॒न॒रः। प्र॒त्नऽथा॑। नाक॑म्। आ। अ॒रु॒ह॒त्। दि॒वः। पृ॒ष्ठम्। भन्द॑मानः। सु॒मन्म॑ऽभिः। सः। पू॒र्व॒ऽवत्। ज॒नय॑न्। ज॒न्तवे॑। धन॑म्। स॒मा॒नम्। अज्म॑म्। परि॑। ए॒ति॒। जागृ॑विः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:2» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (भन्दमानः) कल्याण को करता हुआ (जागृविः) जागता सा (वैश्वानरः) अग्नि (प्रत्नथा) पुरातन के समान (दिवः) दिव्य आकाश के समान (पृष्ठम्) पर भाग (नाकम्) स्वर्ग सुख भोग विशेष को (आरुहत्) चढ़ता है जो (अज्मम्) गमन होनेवाले मार्ग में (पर्य्येति) सब ओर से जाता है (जन्तवे) वा प्राणी के लिये (समानम्) तुल्य (धनम्) धन को (पूर्ववत्) पूर्व के समान (जनयन्) उत्पन्न करता है (सः) वह (सुमन्मभिः) समस्त उत्तम विचारवाले विद्वानों को विशेषता से जानने योग्य है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। यह अग्नि अपूर्व नहीं है, जो व्यतीत हुए कल्पों में जैसा हुआ वैसा ही अब वर्त्तमान है, भविष्यत्काल में भी होगा। यदि यह सबका प्रकाशक के समान रवि के योग से कार्यकारी वर्त्तमान है तो वह यथावत् जाना और प्रयोग किया हुआ मङ्गल का अच्छे प्रकार देनेवाला होता है ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो भन्दमानो जागृविरिव वैश्वानरः प्रत्नथा दिवः पृष्ठं नाकमारुहत् योऽज्मम्पर्य्येति जन्तवे समानं धनं पूर्ववज्जनयन् स सर्वैर्विद्वद्भिस्सुमन्मभिर्विज्ञेयः ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वैश्वानरः) पावकः (प्रत्नथा) प्रत्नः प्राक्तन इव (नाकम्) (आ) (अरुहत्) आरोहति (दिवः) दिव्यस्याकाशस्य (पृष्ठम्) परभागम् (भन्दमानः) कल्याणं कुर्वाणः (सुमन्मभिः) सुष्ठुविचारैः (सः) (पूर्ववत्) (जनयन्) जनयति (जन्तवे) प्राणिने (धनम्) (समानम्) तुल्यम् (अज्मम्) अजन्ति गच्छन्ति यस्मिन्मार्गे तत् (परि) (एति) सर्वतः प्राप्नोति (जागृविः) सदा जाग्रदिव ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। नह्ययमग्निरपूर्वोऽस्ति योऽतीतेषु कल्पेषु यादृशोऽभूत्तादृश एवेदानीं वर्त्तते भविष्यत्काले भविष्यति च यद्ययं सर्वेषां प्रकाशक इव रवियोगेन कार्यकारी वर्त्तते तर्हि स यथावत् विज्ञातः प्रयुक्तश्च सन् मङ्गलप्रदो भवति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हा अग्नी अपूर्व नाही तर पूर्वकल्पात जसा होता तसाच आताही वर्तमान आहे व भविष्यकाळातही असेल. तो सर्वांचा प्रकाशक असलेल्या सूर्याच्या योगे कार्य करीत असतो. त्याला योग्य रीतीने जाणून त्याचा प्रयोग केल्यास तो कल्याणकारी ठरतो. ॥ १२ ॥